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कविता

का. रुद्रदत्त भारद्वाज की शहादत की पहली वर्षी पर

शमशेर बहादुर सिंह


(19 अप्रैल, 1949)

वह हँसी का फूल -
      ऊषा का हृदय
बस गया है याद में : मानो
अहर्निश्
साँस में एक् सूर्योदय हो!

      जागता व्‍यक्तित्‍व!
      बोलता पाण्डित्‍य!

आज भारद्वाज के विश्‍वास की लाली
रक्‍त का स्‍पंदन - मधुरतर है!
               प्रखरतर है!

×     ×

चढ़ रहा है दिन।

×     ×

धूल में हैं तीन रंग
गड़ा जिसपर मौन भारद्वाज का है - लाल - निशान।
उसी की आभा गगन
पूर्व में लाता।

×     ×

       देखता है मौन अक्षयवट
       क्रांति का इक वृहद् कुम्भ :
       क्रांतिमय निर्माण का इक वृहद् पर्व।
       चमकती असिधार-सी है धार गंगा की।
       हरहरा कर उठ रहा है
                    नव
             जनमहासागर।

 

 


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