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(19 अप्रैल, 1949)
वह हँसी का फूल -
ऊषा का हृदय
बस गया है याद में : मानो
अहर्निश्
साँस में एक् सूर्योदय हो!
जागता व्यक्तित्व!
बोलता पाण्डित्य!
आज भारद्वाज के विश्वास की लाली
रक्त का स्पंदन - मधुरतर है!
प्रखरतर है!
× ×
चढ़ रहा है दिन।
× ×
धूल में हैं तीन रंग
गड़ा जिसपर मौन भारद्वाज का है - लाल - निशान।
उसी की आभा गगन
पूर्व में लाता।
× ×
देखता है मौन अक्षयवट
क्रांति का इक वृहद् कुम्भ :
क्रांतिमय निर्माण का इक वृहद् पर्व।
चमकती असिधार-सी है धार गंगा की।
हरहरा कर उठ रहा है
नव
जनमहासागर।
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